MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 8 भारत में राष्ट्रीय जागृति एवं राजनैतिक संगठनों की स्थापना

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MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 8 भारत में राष्ट्रीय जागृति एवं राजनैतिक संगठनों की स्थापना

MP Board Class 10th Social Science Chapter 8 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 10th Social Science Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

Class 7 English Chapter 10 Thomas Alva Edison MP Board प्रश्न 1.
कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष थे
(i) दादाभाई नौरोजी
(ii) अरविन्द घोष
(iii) गोपालकृष्ण गोखले
(iv) व्योमेश चन्द्र बनर्जी।
उत्तर:
(iv) व्योमेश चन्द्र बनर्जी।

Mp Board Class 7th English Chapter 10 प्रश्न 2.
अंग्रेजी शिक्षा को भारत में मुख्यतः लागू किया
(i) रामकृष्ण गोपाल ने
(ii) मैक्स मूलर ने
(iii) मैकाले ने
(iv) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने।
उत्तर:
(iii) मैकाले ने

Mp Board Class 7 English Chapter 10 प्रश्न 3.
लाला लाजपतराय ने कौन-से समाचार-पत्र के माध्यम से जनता को संघर्ष के लिए प्रेरित किया ?
(i) केसरी
(ii) संवाद कौमुदी
(iii) हिन्दुस्तान
(iv) कायस्थ समाचार
उत्तर:
(iv) कायस्थ समाचार

Thomas Alva Edison Class 7 MP Board प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन उदारवादी विचारों का नहीं था ? (2017)
(i) दादाभाई नौरोजी
(ii) अरविन्द घोष
(iii) गोपालकृष्ण गोखले
(iv) फिरोजशाह मेहता।
उत्तर:
(ii) अरविन्द घोष

Class 7 English Chapter 10 Mp Board प्रश्न 5.
‘स्वतन्त्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।’ यह कथन किससे सम्बन्धित है?
(i) विपिनचन्द्र पाल
(ii) लाला लाजपत राय
(iii) अरविन्द घोष
(iv) बाल गंगाधर तिलक।
उत्तर:
(iv) बाल गंगाधर तिलक।

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. वाइसराय …………… की प्रतिक्रियावादी नीति प्रजातीय भेदभाव से परिपूर्ण थी। (2017)
  2. कांग्रेस का संस्थापक …………… को माना जाता है।
  3. ‘वन्देमारतम्’ की रचना …………… ने की।
  4. 1883 में इण्डियन एसोसिएशन का राष्ट्रीय सम्मेलन …………… में बुलाया गया।

उत्तर:

  1. लॉर्ड लिटन
  2. ए. ओ. ह्यूम
  3. बंकिम चन्द्र चटर्जी
  4. कोलकाता।

सही जोड़ी मिलाइए
Class 7 English Chapter 10 Thomas Alva Edison MP Board
उत्तर:

  1. → (ङ)
  2. → (ग)
  3. → (क)
  4. → (ख)
  5. → (घ)

MP Board Class 10th Social Science Chapter 8 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

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Mp Board Class 7th Solution  प्रश्न 1.
कांग्रेस ने अपने आरम्भिक काल में दुःखों तथा शिकायतों के निराकरण के लिए कौन-से तरीके अपनाए ?
उत्तर:
कांग्रेस ने अपने आरम्भिक काल में दु:खों तथा शिकायतों के निराकरण के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाये –

  1. भारतीय राजनीतिज्ञों तथा नेताओं को एक राष्ट्रमंच पर एकत्र करना।
  2. जो व्यक्ति राष्ट्र-हित के कार्यों में लगे हों उनसे सम्पर्क करना।
  3. प्रान्तीयता, जातिवाद तथा संकीर्ण धार्मिक भावनाओं का परित्याग कर राष्ट्रीय एकता का विकास करना।
  4. जनता की मूल समस्याओं पर विचार कर सरकार तक पहुँचाना।

Lesson 10 Thomas Alva Edison MP Board प्रश्न 2.
उग्रराष्ट्रवादी विचारधारा के प्रमुख नेताओं के नाम बताइए। (2016)
उत्तर:
उग्रराष्ट्रवादी विचारधारा के प्रमुख नेता लाला लाजपतराय, बाल गंगाधर तिलक, विपिनचन्द्र पाल, अरविन्द घोष आदि।

Mp Board Class 7 English Solutions प्रश्न 3.
बहिष्कार का अर्थ स्पष्ट कीजिए। (2017)
उत्तर:
‘बहिष्कार’ का अर्थ केवल विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार से नहीं था अपितु इसका व्यापक अर्थ सरकारी सेवाओं, प्रतिष्ठानों तथा उपाधियों का बहिष्कार था।

Mp Board Class 7th English प्रश्न 4.
लॉर्ड कर्जन ने शासन की कौन-सी नीति अपनाई? (2018)
उत्तर:
लॉर्ड कर्जन ने 1905 में फूट डालो और शासन करो’ की नीति का अनुसरण करते हुए बंगाल को दो भागों में विभाजित कर दिया। उसने बंगाल की जनता की एकता को आघात पहुँचाने और वहाँ के हिन्दुओं
और मुसलमानों में सदैव के लिए फूट डालने के उद्देश्य से विभाजन का कुटिल षड्यन्त्र रचा था जिससे बंगाल में विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो गयी।

Mp Board 7th Class English Book Solutions प्रश्न 5.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ह्यूम ने किन उद्देश्यों को लेकर की थी ?
उत्तर:
इतिहासकारों के अनुसार ह्यूम और उसके साथियों ने अंग्रेजी सरकार के इशारे पर ब्रिटिश साम्राज्य की सुरक्षा कवच के रूप में कांग्रेस की स्थापना की। ह्यूम नहीं चाहते थे कि सरकार के असन्तोष से नाराज जनता हिंसा का मार्ग अपनाये, अतः वे जनता को हिंसा के मार्ग की अपेक्षा वैधानिक मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहते थे। ह्यूम का विचार था कि अंग्रेजी सरकार और भारतीय जनता के बीच एक कड़ी होनी चाहिए। अतः उन्होंने कांग्रेस की स्थापना की।

प्रश्न 6.
कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कितने प्रतिनिधियों ने भाग लिया ? .
उत्तर:
कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कांग्रेस के इस प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी थे।

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MP Board Class 10th Social Science Chapter 8 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में राष्ट्रीय जागृति के विकास में पश्चिम के विचारों और शिक्षा ने क्या भूमिका निभाई? (2009, 17)
उत्तर:
अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार लॉर्ड मैकॉले ने भारतीय राष्ट्रीयता को जड़ से समाप्त करने के उद्देश्य से किया था। वह भारत में अंग्रेजी भाषा का प्रचार कर एक ऐसा वर्ग तैयार करना चाहता था जो ब्रिटिश साम्राज्य के हित के लिए कार्य करे। परन्तु अंग्रेजी शिक्षा ने भारतीयों को विदेशी बन्धन से मुक्त होने की प्रेरणा दी। अंग्रेजी शिक्षा का ज्ञान होने के कारण भारतीय पाश्चात्य साहित्य, विचार, दर्शन और शासन प्रणाली से परिचित हुए। रूसो, वाल्टेयर, मैजिनी, बर्क और गैरीबाल्डी के विचारों ने उन्हें अत्यधिक प्रभावित किया।

इस प्रकार पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीयों को राष्ट्रीयता, स्वतन्त्रता, समानता और लोकतन्त्र जैसे आधुनिक विचारों से अवगत कराया।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय जागृति के विकास में किन भारतीय समाचार-पत्रों ने अपनी भूमिका निभाई थी? लिखिए।
अथवा
भारत में राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करने में प्रेस का क्या योगदान रहा ?
उत्तर:
जन-साधारण में जागृति लाने के लिए प्रेस एक शक्तिशाली माध्यम सिद्ध हुआ। भारतीयों में राष्ट्रीयता, देश-भक्ति और राजनीतिक विचारों का संचार करने में तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं ने बहुत सहायता की। प्रेस द्वारा ब्रिटिश सरकार की जमकर आलोचना की गयी तथा शोषण पर आधारित उनकी नीतियों का पर्दाफाश किया गया। इस कार्य को करने के लिए जिन पत्र-पत्रिकाओं ने योगदान दिया, उनमें प्रमुख हैं-अमृत बाजार पत्रिका, हिन्दू, इण्डियन मिरर, पैट्रियेट आदि। बंगाल से तथा मद्रास से स्वदेशी मित्र, हिन्दू और केरल पत्रिका, उत्तर-प्रदेश से एडवोकेट, हिन्दुस्तानी और आजाद तथा पंजाब से कोहनूर, अखबारे आम और ट्रिब्यून आदि। आधुनिकं राष्ट्रवाद के प्रसार में प्रेस ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं ने सरकारी नीतियों की खुलेआम आलोचना करके लोगों में विदेशी शासन के विरोध का उत्साह जाग्रत कर दिया।

प्रश्न 3.
अंग्रेजों के आर्थिक शोषण की नीति ने भारतीय कुटीर उद्योगों को कैसे प्रभावित किया ? (2009, 12, 13, 17)
उत्तर:
भारत में ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण भारतीय उद्योग-व्यापार नष्ट हो गये। औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् इंग्लैण्ड में सूती वस्त्र उद्योग के विकास के कारण तथा यूरोप से आयातों पर बढ़ते प्रतिबन्ध के कारण अंग्रेजी सरकार ने भारतीय उद्योगों को नष्ट करने की नीति अपनायी। भारत कुछ ही दशकों के भीतर एक प्रमुख निर्यातक स्थिति से गिरकर विदेशी वस्तुओं का सबसे बड़ा उपभोक्ता राष्ट्र बन गया। भारतीय कुटीर तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का तेजी से पतन हो गया, क्योंकि वे इंग्लैण्ड के कारखानों के बने माल की प्रतियोगिता विदेशी सरकार की शत्रुतापूर्ण नीति के कारण न कर सके। अब वह ब्रिटिश उद्योगों के लिए कच्चे माल का उत्पादन करने लगे। भारत का विदेशी व्यापार भारतीय व्यापारियों के हाथों से निकल गया।

प्रश्न 4.
भारत में बसने वाले युरोपियों (अंग्रेजों) ने इलबर्ट बिल का विरोध क्यों किया ? (2010, 12, 18)
उत्तर:
इलबर्ट बिल-लॉर्ड रिपन ने जातीय भेदभाव को दूर करने के लिए एक कानून बनाने का प्रयास किया। इसे विधि सदस्य इलबर्ट ने तैयार किया था। अतः इसे इलबर्ट बिल कहा गया है। इसके द्वारा मजिस्ट्रेट और सेशन जज को फौजदारी मुकदमों में यूरोपीय लोगों की सुनवाई का अधिकार दिया जाना था।

इलबर्ट बिल प्रजातीय भेदभाव की नीति को उजागर करता था। भारतीय न्यायाधीशों को यूरोपीय अपराधियों का मुकदमा सुनने का अधिकार नहीं था। इस भेदभाव को दूर करने के लिए इलबर्ट बिल लाया गया। भारत में बसने वाले यूरोपियनों ने इलबर्ट बिल का संगठित होकर विरोध किया और इसे काला कानून माना। अन्ततः ब्रिटिश सरकार को इलबर्ट बिल वापस लेना पड़ा। भारतीयों के मन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 5.
कांग्रेस की स्थापना के क्या उद्देश्य थे ? लिखिए। (2018)
उत्तर:
कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन (1885) में निम्नलिखित उद्देश्य बताए

  1. साम्राज्य के विभिन्न भागों में राष्ट्र के हित के कार्यों में संलग्न ऐसे सभी व्यक्तियों में परस्पर घनिष्ठता और मित्रता को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करना।
  2. अपने सभी राष्ट्र-प्रेमियों में जाति, धर्म या प्रान्तीयता के सभी सम्भव पूर्वाग्रहों को सीधे मित्रतापूर्ण व्यक्तिगत सम्पर्क से दूर करना और राष्ट्रीय एकता की उन भावनाओं को पूरी तरह विकसित और संगठित करना।
  3. तत्कालीन महत्वपूर्ण और ज्वलन्त सामाजिक समस्याओं के बारे में शिक्षित वर्ग के परिपक्व व्यक्तियों के साथ पूरी तरह से विचार-विमर्श करने के बाद बहुत सावधानी से इनका प्रमाणित लेखा-जोखा तैयार करना।
  4. जिन दिशाओं में और जिस तारीख से अगले बारह महीनों में देश के राजनीतिज्ञों को लोकहित के लिए कार्य करना चाहिए उनका निर्धारण करना।

प्रश्न 6.
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक में किन कारणों से उग्रराष्टवाद को प्रोत्साहन मिला? (2013)
अथवा
उग्र राष्टवाद के उदय के कोई पाँच कारण लिखिए। (2009, 12, 15)
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक में निम्न कारणों से उग्र राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन मिला –

  1. अकाल व प्लेग-19 वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में भारत में कई भागों में अकाल तथा प्लेग फैला। ब्रिटिश सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इससे लोगों में असन्तोष फैला जिससे उग्रराष्ट्रवाद ने जन्म लिया।
  2. बंगाल विभाजन-लार्ड कर्जन ने 1905 में बंग-भंग द्वारा बंगाल का विभाजन कर दिया। इससे जनता में रोष भर गया और वह उग्रराष्ट्रवाद की ओर अग्रसर हुई।
  3. धार्मिक और सामाजिक सुधारों का प्रभाव-धार्मिक और सामाजिक सुधारकों ने भारतीय जनता में आत्मविश्वास पैदा कर दिया था।
  4. विदेशी घटनाओं का प्रभाव-फ्रांस और अमेरिका की क्रान्तियों ने भी भारतीयों को प्रेरणा प्रदान की। अतः वे उग्रराष्ट्रवादी आन्दोलनों द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्त करने का प्रयास करने लगे।
  5. ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीति-ब्रिटिश सरकार की आर्थिक शोषण की नीति के कारण भारतीय कृषि और उद्योग-धन्धों को अपार क्षति पहुँची। ब्रिटिश आर्थिक नीति पूँजीपतियों के हित संरक्षण की थी। इस प्रकार अंग्रेजों की आर्थिक शोषण की नीतियों ने भी उग्रराष्ट्रवाद के विकास में परम योगदान दिया।

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MP Board Class 10th Social Science Chapter 8 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय राष्ट्रीय जागृति में धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आन्दोलनों की भूमिका स्पष्ट कीजिए। (2009)
उत्तर:
राष्ट्रीय जागृति में धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आन्दोलनों की भूमिका
धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आन्दोलनों ने राष्टवाद के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन सुधार आन्दोलनों के प्रणेता राजनीतिक जागृति के पथप्रदर्शक बने। इस आन्दोलन ने भारतीयों के हृदय में भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न की। सामाजिक और धार्मिक सुधार आन्दोलन के प्रणेता-राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, श्रीमती ऐनी बेसेन्ट आदि ने भारतीयों में स्वधर्म, स्वदेशी और स्वराज्य की भावना जागृत की।

उन्नीसवीं शताब्दी के आन्दोलन मूलरूप में सामाजिक और धार्मिक थे तथा उनमें राष्ट्रीयता की भावनाओं का समावेश था। स्वामी दयानन्द सरस्वती के ‘आर्य-समाज’ स्वामी विवेकानन्द के रामकृष्ण मिशन’ के अतिरिक्त ऐसे अनेक आन्दोलन, सम्प्रदाय और व्यक्ति हुए जिन्होंने समाज में चेतना जगायी। मुसलमानों में अलीगढ़ और देवबन्द आन्दोलन, सिक्खों में सिंह सभा और गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन और थियोसोफिकल सोसायटी ने भारतीय समाज और चिन्तन को बदल डाला।

इस प्रकार भारत में सुधार आन्दोलनों ने राष्ट्रवाद के उत्थान में बहुत बड़ा योगदान दिया। उनके प्रभावों से लोगों में एकता उत्पन्न हुई और उन्होंने धर्मनिरपेक्ष तथा राष्ट्रीय दृष्टिकोण अपनाना शुरू कर दिया। फलस्वरूप लोग जातिवाद तथा संकुचित दृष्टिकोण छोड़ने लगे। इन आन्दोलनों ने लोगों में एकता की भावना का संचार किया तथा सहयोग एवं भाईचारे को बढ़ावा दिया। सुधार आन्दोलनों ने सामाजिक बुराइयों को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया न कि सम्प्रदाय के आधार पर। अतः लोगों में राष्ट्रवाद की भावना जागृत होनी स्वाभाविक थी।

प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारणों का विवरण दीजिए। (2014)
अथवा
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य लिखिए। (2009)
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के कारण

कांग्रेस की स्थापना ए. ओ. ह्यूम ने सन् 1885 में की थी। राम सेवानिवृत्त एक सरकारी अधिकारी था। जब वह सरकारी सेवा में था उस समय देश के विभिन्न भागों से गुप्तचर विभाग की एक गोपनीय रिपोर्ट देखने को मिली थी। उस रिपोर्ट से उसे यह विश्वास हो गया था कि देश में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध गहरा असन्तोष और घृणा फैली हुई है और हिंसात्मक विद्रोह की आशंका है। उसने यह अनुभव किया कि इस हिंसात्मक विद्रोह को यदि सांविधानिक दिशा नहीं दी गयी तो देश में क्रान्ति हो सकती है। इसके लिए एक राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता है। उसने अपनी इस योजना को गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन के सामने रखा। उसने इस पर अपनी स्वीकृति दे दी। इस प्रकार अंग्रेजों ने अपनी सुरक्षा हेतु कांग्रेस की स्थापना की। कांग्रेस के स्थापना सम्मेलन में 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कांग्रेस के इस प्रथम सम्मेलन के अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी बने।

स्थापना के उद्देश्य – इतिहासकारों का कथन है कि ह्यूम और उसके साथियों ने अंग्रेजी सरकार के इशारे पर ब्रिटिश साम्राज्य के सुरक्षा कवच के रूप में कांग्रेस की स्थापना की। ह्यूम नहीं चाहते थे कि सरकार के असन्तोष से नाराज जनता हिंसा का मार्ग अपनाये। अत: वे जनता को हिंसा के मार्ग की अपेक्षा वैधानिक मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहते थे। संवैधानिक मार्ग से आशय है-प्रार्थना-पत्रों और प्रतिनिधि मण्डलों के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को प्रभावित कर अपनी माँगें पूर्ण करवाना।

कांग्रेस के नेताओं ने कांग्रेस की स्थापना में ह्यूम का नेतृत्व स्वीकार किया क्योंकि वे तत्कालीन परिस्थितियों में ब्रिटिश सरकार के साथ खला संघर्ष करने की स्थिति में नहीं थे। वे ब्रिटिश संरक्षण में कांग्रेस की स्थापना के विचार को लाभदायक मानते थे और ह्यूम के विचारों से सहमत थे। व्यावहारिकता इसी में थी कि वे एक मंच तैयार करने में ह्यूम को सहयोग प्रदान करें जहाँ देश की समस्याओं पर विचार-विमर्श हो सके।

कांग्रेस की स्थापना के लिए उस समय की राष्ट्रव्यापी हलचलें-देशभक्ति की भावना, विभिन्न वर्गों में व्याप्त बेचैनी, ब्रिटेन की उदारवादी पार्टी से भारतीयों को निराशा एवं विभिन्न राजनीतिक संगठनों द्वारा एक केन्द्रव्यापी संगठन की आवश्यकता महत्वपूर्ण कारण थे। इसीलिए कुछ विद्वान इसे राष्ट्रीय चेतना की अभिव्यक्ति मानते हैं।

प्रश्न 3.
उदारवादी दल की कार्यविधि उग्रराष्ट्रवादी दल की कार्यविधि से किस प्रकार भिन्न थी? स्पष्ट कीजिए। (2016)
उत्तर:
उदारवादी दल और उग्रराष्ट्रवादी दल के बीच अन्तर

इन दोनों की कार्यविधि में निम्नलिखित अन्तर थे –

  1. उदारवादी अंग्रेजी शासन के अधीन रहकर आर्थिक सुधारों के पक्ष में थे, जबकि उग्रराष्ट्रवादी दल वाले यह समझते थे कि देश आर्थिक क्षेत्र में तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक यहाँ अंग्रेजी साम्राज्य का अन्त नहीं हो जाता।
  2. उदारवादी दल शान्तिमय तथा संवैधानिक रास्ता अपनाकर उद्देश्य की प्राप्ति के पक्ष में था, जबकि उग्रराष्ट्रवादी दल वाले क्रान्तिकारी तथा शक्ति के प्रयोग से अपना उद्देश्य प्राप्त करने के पक्ष में थे।
  3. उदारवादी दल वालों के प्रति सरकार का रुख उदार था, जबकि उग्रराष्ट्रवादी दल के प्रति सरकार का रुख कठोर एवं शत्रुतापूर्ण था। नरम दल के नेताओं (दादाभाई नौरोजी. गोपालकृष्ण गोखले, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी) को सरकार ने कभी बन्द नहीं किया, जबकि गरम दल के नेताओं; जैसे–लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिनचन्द्र पाल आदि को अनेक बार जेल भेजा गया।
  4. उदारवादी दल वाले अंग्रेजी शासन से कोई विशेष घृणा नहीं करते थे जबकि उग्रराष्ट्रवादी दल वाले ब्रिटिश साम्राज्य का अन्त करके स्वतन्त्रता प्राप्ति को अपना लक्ष्य समझते थे।
  5. उदारवादी दल के नेता राजनैतिक उन्नति के स्थान पर भारतीयों के सामाजिक व आर्थिक विकास के अधिक समर्थक थे, जबकि उग्रराष्ट्रवादी दल के नेता पहले राजनैतिक स्वतन्त्रता के पक्ष में थे। गरम दल वालों का कहना था, “स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।” उग्रराष्ट्रवादी दल वाले नेताओं का कहना था कि, “राजनैतिक स्वतन्त्रता के बिना भारतीयों की आर्थिक दशा सुधारी नहीं जा सकती।”
  6. उदारवादी पश्चिमी सभ्यता की सराहना करने वाले थे जबकि उग्रराष्ट्रवादी दल को भारतीय सभ्यता पर गर्व था।

इस प्रकार स्पष्ट है कि उदारवादी दल के नेताओं की सभी नीतियाँ व साधन उदार थे, जबकि उग्रराष्ट्रवादी दल के नेता उदार साधनों के विरुद्ध थे।

प्रश्न 4.
टिप्पणी लिखिए

(क) बाल गंगाधर तिलक
(ख) विपिनचन्द्र पाल
(ग) लाला लाजपतराय।

उत्तर:
(क) बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता थे। सर वैलेण्टाइन शिरोल के अनुसार, “तिलक भारतीय विप्लव के जन्मदाता थे। वे पहले भारतीय थे जिन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन को जन आन्दोलन का रूप दिया।” तिलक भारतीय संस्कृति में गहन आस्था रखते थे तथा विदेशी शासन तथा नौकरशाही को अभिशाप समझते थे। उनका विश्वास था कि स्वतन्त्रता और अधिकार भीख माँगने से प्राप्त नहीं किये जा सकते वरन् इनको प्राप्त करने के लिए सतत् संघर्षों की आवश्यकता है। उन्होंने देशवासियों को नारा दिया-“स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे हम लेकर रहेंगे।” तिलक का एक निर्भीक तथा राष्ट्रप्रेमी लेखक भी थे। उन्होंने ‘केसरी’ और ‘मराठा’ नामक समाचार-पत्रों का सम्पादन किया। एक लेख ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध प्रकाशित होने के कारण तिलक को चार माह की जेलयात्रा भी करनी पड़ी थी।

तिलक ने कांग्रेस में उग्रराष्ट्रवादी दल का नेतृत्व करना प्रारम्भ कर दिया था, अतः अंग्रेजी सरकार उनसे असन्तुष्ट हो गयी। 1907 ई. में तिलक पर पुनः आरोप लगाकर अंग्रेज सरकार ने उन्हें 7 वर्ष की सजा दी। तिलक जेल से निकलने के पश्चात पुनः स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने लगे तथा उन्होंने “होमरूल आन्दोलन” की स्थापना की तथा ऐनी बेसेण्ट के साथ मिलकर इस आन्दोलन का बड़ी सक्रियता के साथ संचालन किया। परिणामस्वरूप वे राष्ट्रीय आन्दोलन के सर्वमान्य नेता हो गये।

(ख) विपिनचन्द्र पाल

राष्ट्रीयता की उग्रराष्ट्रवादी विचारधारा के अग्रदूत विपिनचन्द्र पाल ओजस्वी वक्ता, कशल पत्रकार एवं शिक्षाशास्त्री थे। ‘न्यू इण्डिया’ और ‘वन्देमातरम्’ पत्रों के माध्यम से उन्होंने अपने विचार प्रकट किये। विपिनचन्द्र पाल ने मद्रास का दौरा किया और जनता में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध चेतना का संचार किया। विपिनचन्द्र पाल तथा सुरेन्द्र बनर्जी ने बंगाल से लेकर असम तक की यात्रा की तथा स्थान-स्थान पर सभाओं का आयोजन किया तथा जनता से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने तथा विदेशी माल का बहिष्कार करने की अपील की। बंगाल में अभूतपूर्व राष्ट्रीय चेतना के विकास में विपिनचन्द्र पालन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। पाल ने स्वदेशी के दिनों में देशभक्ति की नयी सशक्त भावना का सन्देश दिया। पाल ने उस समय देश में प्रचलित विजातीय तथा मूलविहीन शिक्षा-प्रणाली की भर्त्सना की और तिलक तथा अरविन्द की भाँति राष्ट्रीय शिक्षा का समर्थन किया। पाल ने दृढ़ता से कहा कि, “भारत में राजनीति को अर्थतन्त्र से, राजनीति को औद्योगिक प्रगति से पृथक् करना असम्भव है।”

वे भारत में सशक्त, साहसपूर्ण, स्वावलम्बी तथा प्रचण्ड राष्ट्रवाद के पैगम्बर के रूप में प्रकट हुए।

(ग) लाला लाजपतराय

लाला लाजपतराय पंजाब के शेर कहलाते थे। स्वाधीनता सेनानियों की पंक्ति में उनका उच्च स्थान है। वे राष्ट्रीय वीर थे। पक्के राष्ट्रवादी, समाज-सुधारक तथा स्वाधीनता के निर्भीक योद्धा के रूप में वे सम्पूर्ण देश की प्रशंसा तथा प्रेम के पात्र बन गये थे। उनका जन्म सन् 1865 ई. को लुधियाना जिले में स्थित जगराँव में हुआ था। सन् 1905 ई. में उन्होंने देश की राजनीति में सक्रिय भाग लेना शुरू किया। वे गरम दल के नेता थे। उन्होंने बंगाल विभाजन का बहुत विरोध किया। उन्होंने ‘कायस्थ समाचार’ के माध्यम से जनता को संघर्ष के लिए प्रेरित किया। उन्होंने ‘पंजाबी’, ‘वन्दे मातरम्’ (उर्दू में) और ‘द पीपुल’ इन तीन समाचार पत्रों की स्थापना की और उनके द्वारा स्वराज का सन्देश फैलाया। उन्होंने 1916 में अमेरिका में ‘यंग इण्डिया’ नामक पुस्तक लिखी। उसमें उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की व्याख्या प्रस्तुत की।

उन्होंने अपने ओजस्वी भाषणों और लेखों द्वारा जनता में महान जागृति उत्पन्न की। वे समाजवादी थे और पूँजीवादी तथा आर्थिक शोषण के सख्त विरुद्ध थे। वे किसानों तथा श्रमिकों की उन्नति चाहते थे। सन 1907 में उन्होंने सरदार अजीत सिंह से मिलकर कोलोनाइजेशन बिल के विरुद्ध आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन से ब्रिटिश सरकार आतंकित हो उठी और उसने इन दोनों देशभक्तों को बिना मुकदमा चलाये 6 माह के लिए देश से निर्वासित का दण्ड देकर माण्डले (बर्मा) की जेल में बन्द कर दिया। 18 नवम्बर, सन् 1907 को वे जेल से छूटकर लाहौर पहुँचे। वहाँ उनका भव्य स्वागत किया गया।

लाला लाजपतराय राष्ट्रीय शिक्षा, स्वदेशी प्रचार एवं विदेशी कपड़े के बहिष्कार, निष्क्रिय प्रतिरोध तथा सांविधानिक आन्दोलन के समर्थक थे। उन्होंने असहयोग आन्दोलन में आगे बढ़कर काम किया। उनको सन्

  • आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिन्तन : विश्वनाथ प्रसाद वर्मा, पृष्ठ 235.
  • पुनः वही, पृष्ठ 231.

1920 में कलकत्ता के कांग्रेस के अधिवेशन में सभापति चुना गया। असहयोग आन्दोलन में उनको गिरफ्तार कर लिया गया। जेल से छूटने के बाद वे तिलक के स्वराज्य दल में सम्मिलित हो गये। सन 1928 ई. में उन्होंने साइमन कमीशन का विरोध किया और लाहौर में एक जुलूस निकाला। पुलिस अधिकारी साण्डर्स ने उन पर बड़े घातक लाठी प्रहार किये, जिसके कारण 17 नवम्बर, सन् 1928 ई. को उनका स्वर्गवास हो गया। ऐसे महान देशभक्त, शिक्षाशास्त्री, ओजस्वी वक्ता और उच्चकोटि के साहित्यकार की मृत्यु से सारे देश में शोक छा गया।

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MP Board Class 10th Social Science Chapter 8 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 10th Social Science Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय

प्रश्न 1.
भारत से धन निष्कासन और उसके कारण उत्पन्न कुप्रभावों से किसने परिचित कराया ?
(i) बाल गंगाधर तिलक
(ii) दादाभाई नौरोजी
(iii) अरविन्द घोष
(iv) विपिनचन्द्र पाल।
उत्तर:
(ii)

प्रश्न 2.
‘इण्डियन लीग’ की स्थापना हुई
(i) 1875 में
(ii) 1880 में
(iii) 1885 में
(iv) 1890 में।
उत्तर:
(i)

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय आन्दोलन का उग्रराष्ट्रवादी स्वरूप सर्वप्रथम किस राज्य में परिलक्षित हुआ ?
(i) मध्य प्रदेश
(ii) गुजरात
(iii) महाराष्ट्र
(iv) राजस्थान।
उत्तर:
(iii)

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. ………………….. एक्ट द्वारा भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों के दमन करने का प्रयास किया।
  2. उदारवादियों ने लन्दन से ………………….. नामक एक समाचार-पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया।

उत्तर:

  1. वर्नाक्यूलर प्रेस
  2. इण्डिया।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
1867 ई. में मुम्बई में प्रार्थना समाज की स्थापना हुई।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 2.
थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने की थी।
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 3.
इलबर्ट बिल प्रजातीय भेदभाव की नीति को उजागर करता था।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 4.
ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन के प्रमुख सदस्य बाल गंगाधर तिलक व फिरोजशाह मेहता थे।
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 5.
1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना की गई थी।
उत्तर:
सत्य।

जोड़ी मिलाइए
Mp Board Class 7th English Chapter 10
उत्तर:

  1. → (ख)
  2. → (ग)
  3. → (क)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष कौन थे ?
उत्तर:
व्योमेश चन्द्र बनर्जी

प्रश्न 2.
बंगाल का विभाजन कब और किसके द्वारा किया गया था?
उत्तर:
20 जुलाई, 1905 को लॉर्ड कर्जन द्वारा

प्रश्न 3.
“स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे।” यह कथन किसने कहा था ? (2016)
उत्तर:
लोकमान्य तिलक

प्रश्न 4.
किस नाटक में नील बागान के मजदूरों पर हो रहे अत्याचारों और दुःखों को उजागर किया गया था ?
उत्तर:
नील दर्पण

प्रश्न 5.
महाराष्ट्र में गणपति उत्सव को कब और किसने सार्वजनिक रूप प्रदान किया ?
उत्तर:
1893 ई. में बाल गंगाधर तिलक।

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MP Board Class 10th Social Science Chapter 8 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बाल-लाल-पाल’ से तात्पर्य है ?
उत्तर:
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के नेतृत्व में महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक, पंजाब के लाल लाजपतराय तथा बंगाल के विपिनचन्द्र पाल की अपनी विशिष्ट भूमिका रही थी। इस कारण ही भारत स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में इन तीनों को बाल-लाल-पाल के नाम से सम्बोधित किया गया तथा इन तीनों को राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में प्रमुख स्थान दिया गया है।

प्रश्न 2.
‘राष्ट्रीय शिक्षा परिषद’ की स्थापना क्यों की गई थी ?
उत्तर:
अंग्रेजी शिक्षा भारतीयों के बौद्धिक विकास को अवरुद्ध करती थी। राष्ट्रवादियों ने राष्ट्रीय शिक्षा के कार्यक्रम के माध्यम से भारतीयों के बौद्धिक विकास के लिए प्रयास किये। इसका प्रमुख उद्देश्य था-विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा देना जो देश के हितों के अनुकूल हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ‘राष्ट्रीय शिक्षा परिषद’ की स्थापना की गयी।

प्रश्न 3.
कांग्रेस की स्थापना कब और किसने की थी ? (2015)
उत्तर:
कांग्रेस की स्थापना 1885 ई. में ए. ओ. ह्यूम ने की थी।

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MP Board Class 10th Social Science Chapter 8 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उग्रराष्ट्रवादी आन्दोलन का महत्व स्पष्ट कीजिए। (2009)
उत्तर:
उग्रराष्ट्रवादी आन्दोलन का महत्व-उग्र राष्ट्रवादियों ने ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग की अपेक्षा निष्क्रिय प्रतिरोध की नीति अपनायी। जो आन्दोलन केवल शिक्षित वर्ग तक सीमित था उसे उन्होंने जन आन्दोलन में बदल दिया। उग्र राष्ट्रवादियों के आन्दोलन का सबसे बड़ा महत्व यह है कि इस आन्दोलन के प्रणेताओं ने हिंसा के मार्ग को कभी नहीं अपनाया तथा आन्दोलन को प्रभावशाली बनाने के लिए रचनात्मक कार्यक्रम पर विशेष जोर दिया। उन्होंने बहिष्कार में स्वदेशी और राष्ट्रीय शिक्षा जैसे रचनात्मक कार्य आरम्भ किए तथा स्वाभिमान, स्वावलम्बन और आत्मनिर्भरता जैसे आन्तरिक गुणों के विकास पर बल दिया।

प्रश्न 2.
उदारवादी कांग्रेस की प्रमख माँगें क्या थीं?
उत्तर:
उदारवादी कांग्रेस की माँगें- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों एवं अन्य अवसरों पर उदारवादियों ने जो माँगें प्रस्तुत की, उनमें प्रमुख थीं –

  1. प्रान्तीय तथा केन्द्रीय विधान सभाओं में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में वृद्धि की जाए।
  2. प्रशासनिक सेवाओं का भारतीयकरण किया जाए।
  3. सेना के खर्चों में कमी की जाए।
  4. ब्रिटिश साम्राज्य की सुरक्षा का भार भारत पर न डाला जाए।
  5. कुटीर उद्योगों तथा तकनीकी शिक्षा का विस्तार किया जाए।
  6. उच्च पदों पर भारतीयों की नियुक्ति की जाएँ।
  7. किसानों पर से कर के बोझ कम किये जाएँ।

प्रश्न 3.
उदारवादियों की प्रमुख उपलब्धियाँ बताइए।
उत्तर:
उदारवादियों की उपलब्धियाँ-उदारवादियों की महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ निम्नलिखित थीं –

  1. उन्होंने कांग्रेस के शैशव काल में राष्ट्रीय संघर्ष के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार किया।
  2. उन्होंने भारतीयों को देश की समस्याओं पर विचार-विमर्श के लिए एक मंच उपलब्ध कराया और उन्हें राजनीतिक रूप से शिक्षित किया।
  3. उन्होंने लोगों को बताया कि विदेशी शासन से हमें क्या-क्या हानियाँ हो रही हैं।
  4. दादाभाई नौरोजी ने भारत से धन निष्कासन और उसके कारण उत्पन्न कुप्रभावों से लोगों को परिचित कराया।
  5. इन्हीं नरम-पंथी नेताओं ने राष्ट्रीय आन्दोलन की नींव रखी तथा इनकी उपलब्धियाँ ही बाद में तीव्र राष्ट्रीय आन्दोलन का आधार बन गयीं।

प्रश्न 4.
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में राष्ट्रीय जागृति के क्या कारण थे ?
अथवा
भारत में राष्ट्रीय जागृति के कारणों का वर्णन कीजिए। (2010)
उत्तर:
राष्ट्रीय जागृति के लिए उत्तरदायी तत्व – 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में राष्ट्रीय जागृति के लिए निम्नलिखित प्रमुख तत्व उत्तरदायी थे –

(1) विश्व के अनेक राष्ट्रों में राष्ट्रीय जागृति उत्पन्न करने में धर्म-सुधार आन्दोलन की प्रमुख भूमिका रही है। उन्नीसवीं शताब्दी में अनेक महापुरुषों ने सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों का अन्त करने का बीड़ा उठाया और भारतीयों के सामाजिक जीवन में नयी जान डाल दी। इन महापुरुषों में राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, देवेन्द्रनाथ ठाकुर, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानन्द इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन सुधारकों ने एकता, समानता एवं स्वतन्त्रता का पाठ पढ़ाकर भारतीय जन-जीवन में एक नयी चेतना का मन्त्र फेंक दिया।

(2) ब्रिटिश सरकार की व्यापारिक तथा औद्योगिक नीति के कारण भारतीय गृह उद्योग नष्ट हो गये जिसके कारण लाखों जुलाहे और दस्तकार बेकार हो गये थे। देश में बेरोजगारी और निर्धनता भयंकर रूप में बढ़ी। इस आर्थिक दुर्दशा के कारण जनता में असन्तोष की भावना पनपी, जो राष्ट्रीय जागृति में बहुत सहायक सिद्ध हुई।

(3) उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय विचारधारा से ओत-प्रोत समाचार-पत्रों का प्रकाशन हुआ जिनके माध्यम से राष्ट्रवादी भारतीयों ने राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया।

(4) यातायात के साधनों में सुधार तथा एक भाषा (अंग्रेजी) की प्राप्ति से भारत के नेताओं को देश के कोने-कोने में राष्ट्रीयता का प्रचार करने तथा सामान्य जनता तक अपने विचार पहुँचाने का अवसर प्राप्त हुआ, जिससे भारतीयों में राष्ट्रीय जागृति उत्पन्न हुई।

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MP Board Class 10th Social Science Chapter 8 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में राष्ट्रीयता के उदय होने के कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
वे कौनसे प्रमुख कारण थे जिन्होंने भारत में राष्ट्रीयवाद को बढ़ाने में सहायता पहुँचाई ?
उत्तर:
भारत में राष्ट्रीयता के उदय होने के निम्नलिखित प्रमुख कारण थे –
(1) राजनीतिक और प्रशासनिक एकीकरण – ब्रिटिश शासन से पूर्व भारत में राजनीतिक एकता का अभाव था। भारत छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था। ब्रिटिश शासन के फलस्वरूप सम्पूर्ण देश एक राजनीतिक तथा प्रशासनिक सूत्र में बँध गया। फलतः भारतवासी अपने को एक राष्ट्र मानने लगे। इससे राष्ट्रीयता की उत्पत्ति तथा विकास में भारी सहयोग मिला।

(2) 1857 का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम – 1857 की क्रान्ति भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। यह एक महत्वपूर्ण परिवर्तनशील बिन्दु था। इस आन्दोलन ने राष्ट्रीय भावनाओं को उत्तेजित किया और इस प्रकार राष्ट्रीय आन्दोलन का मार्ग साफ कर दिया।

(3) पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव-ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजी की शिक्षा शुरू हुई जिससे विभिन्न प्रान्तों के शिक्षित वर्ग के लोग अंग्रेजी द्वारा अपने विचार व्यक्त करने लगे। इस प्रकार एक भाषा-माध्यम की प्राप्ति से देश के नेताओं को देश के कोने-कोने में राष्ट्रीयता का प्रचार करने तथा सामान्य जनता तक अपने विचार पहुँचाने का अवसर प्राप्त हुआ।

(4) लॉर्ड लिटन का प्रशासन-लॉर्ड लिटन का प्रतिक्रियावादी शासन राष्ट्रीयता की भावना बढ़ाने में सहायक हुआ। उस समय देश में भयंकर अकाल पड़ा था, परन्तु लिटन ने दिल्ली में शानदार दरबार का आयोजन कर जले पर नामक छिड़कने का काम किया। इस कारण भारतीय समाचार-पत्रों ने खुलकर लिटन की आलोचना की। इससे भारतीय जनता में आक्रोश भड़का जो राष्ट्रीयता के लिए हितकर सिद्ध हुआ।

(5) साहित्य और समाचार-पत्रों का योगदान-भारतीय राष्ट्रवाद की पृष्ठभूमि भी कतिपय साहित्यकारों द्वारा तैयार की गयी थी। इस दिशा में दीनबन्धु मित्र, ईश्वरचन्द्र, बंकिमचन्द्र, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। बंकिमचन्द्र का ‘वन्देमातरम्’ गीत भारतीय जनता के गले का हार बन गया। अंग्रेजी तथा भारतीय समाचार-पत्रों ने भी देश में राष्ट्रीय जागरण की भावना प्रसारित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनमें प्रमुख अमृत बाजार पत्रिका’, ‘हिन्दू’, ‘मिरर’ तथा ‘ट्रिब्यून’ इत्यादि उल्लेखनीय हैं। इन्होंने स्वदेश-प्रेम का प्रचार किया और राष्ट्रीयता की भावना जागृत की।

(6) इलबर्ट बिल-लॉर्ड लिटन के बाद लॉर्ड रिपन भारत का वायसराय बनकर आया। वह उदार था और भारतीयों को राजनीतिक शिक्षा देने का पक्षपाती था, परन्तु उसके शासनकाल में एक ऐसी घटना हुई, जिससे भारतीयों को विश्वास हो गया कि अंग्रेजों से न्याय की आशा करना भूल है और शक्तिशाली संगठन की आवश्यकता है।

(7) भारतीयों का आर्थिक शोषण-ब्रिटिश सरकार की व्यापारिक व औद्योगिक नीति के कारण भारतीय गृह-उद्योग नष्ट हो गये, जिसके कारण बेकारी फैली। इस आर्थिक दुर्दशा के कारण लोगों में असन्तोष की भावना फैली, जो राष्ट्रीय जागृति में सहायक सिद्ध हुई।

(8) भारतीयों के प्रति भेदभाव की नीति-शरू से ही अंग्रेजों ने भारतीयों के प्रति भेदभाव की नीति अपनायी थी। 1857 की क्रान्ति के बाद इस नीति को और बढ़ावा मिला। रेलगाड़ी में, क्लबों में, सड़कों पर और होटलों में ब्रिटिश लोग भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार करते थे। इससे भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की भावना जागृत हुई जिससे राष्ट्रीय जागृति को प्रोत्साहन मिला।

(9) यातायात तथा संचार-साधनों का विकास-ब्रिटिश शासनकाल में परिवहन, संचार व यातायात के साधनों में महत्त्वपूर्ण सुधार हुए जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न प्रान्तों के लोग एक दूसरे से मिलने लगे और परस्पर विचारों का आदान-प्रदान शुरू हुआ। नेताओं के परस्पर सम्पर्क के कारण राष्ट्रीय जागृति कायम करने में भरपूर सहायता मिली।