MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 11 मन की एकाग्रता

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 11 मन की एकाग्रता (निबंध, पं. बालकृष्ण भारद्वाज)

मन की एकाग्रता अभ्यास

बोध प्रश्न

मन की एकाग्रता अति लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
छात्रों की क्या समस्या है?
उत्तर:
छात्रों की समस्या मन का विचलन (चंचलता) है।

प्रश्न 2.
स्थित प्रज्ञता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर:
इन्द्रिय और मन विषयों से अनासक्त ही हो जाते हैं तब स्थित प्रज्ञता प्राप्त होती है।

प्रश्न 3.
मन कितने प्रकार से उत्तेजित होता है?
उत्तर:
मन दो प्रकार से उत्तेजित होता है-बाह्य विषयों से तथा अन्दर की वासनाओं से।

प्रश्न 4.
गीता में परं का अर्थ क्या है?
उत्तर:
गीता में परं का अर्थ परमात्मा है।

MP Board Solutions

मन की एकाग्रता लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्जुन की स्वीकारोक्ति को लिखिए।
उत्तर:
अर्जुन की स्वीकारोक्ति है कि चंचल मन का निग्रह वायु की गति रोकने की तरह दुष्कर है।

प्रश्न 2.
मन को एकाग्र करने के बाह्य साधन क्या हैं?
उत्तर:
यम, नियम, हठयोग आदि मन को एकाग्र करने के बाह्य साधन हैं। इनेके द्वारा मन की वासनाएँ कुछ समय के लिए दवाई जा सकती हैं।

प्रश्न 3.
छात्र की समस्याएँ कौन-कौनसी हैं?
उत्तर:
छात्र की समस्या यह है कि जब वह अध्ययन करने बैठता है तो उसके मन में विभिन्न प्रकार के विचार आने लगते हैं। वह सोचता है कि वह उच्च श्रेणी में परीक्षा पास करके ऊँचा पद प्राप्त करे। परन्तु वह पढ़ने बैठता है तो क्रिकेट खेलने, सिनेमा देखने तथा मस्ती करने के विचार मन में उठने लगते हैं। अध्ययन में मन न लगने के कारण वह घबरा जाता है। उसे परीक्षा की बैचेनी होती है। वह समझ नहीं पाता है कि क्या करे, कैसे करे। उसे अपना भविष्य अंधकारमय दिखने लगता है।

प्रश्न 4.
इन्द्रियों का कार्य क्या होना चाहिए?
उत्तर:
इन्द्रियों का कार्य विषय सेवन है किन्तु उन्हें संयमित रहकर विषय सेवन करना चाहिए। अनिवार्य विषयों में इन्द्रियों को प्रवृत्त होना चाहिए तथा धर्म द्वारा वर्जित विषयों से बचना चाहिए। इस प्रकार इन्द्रियों का कार्य है कि वे नियन्त्रित रहकर अनिवार्य विषयों का सेवन करें।

मन की एकाग्रता दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संयम को समझाइए।
उत्तर:
संयम का अर्थ है नियन्त्रण। संसार में संयम अति आवश्यक है। बिना संयम के हर प्रकार के भोग हानिकारक होते में हैं। इसीलिए इन्द्रिय निग्रह या संयम आवश्यक माना गया है। इन्द्रियों का विषय-सेवन संयमित नहीं होगा तो अनाचरण व्याप्त हो जायेगा। अतः जीवन में संयम का विशेष महत्व है। संयम के बिना स्वस्थ समाज की रचना सम्भव नहीं है।

प्रश्न 2.
परं उच्च लक्ष्य का तात्पर्य क्या है?
उत्तर:
परं उच्च लक्ष्य का तात्पर्य समाज संगठन, राष्ट्र भक्ति, दरिद्र सेवा, ज्ञान प्राप्ति आदि श्रेष्ठ कार्यों से है। गीता में हैं परं का अर्थ परमात्मा बताया गया है। कहा गया है कि समस्त जगत परमात्मा ही है। इसलिए विश्व के श्रेष्ठ कार्यों में लगना परमात्मा के प्रति समर्पण है। धन, शक्ति, राज्य आदि संसार के सामान्य लक्ष्य हैं। उच्च कार्यों में संलग्न होना परमात्मा का ध्यान है। छात्र का परम लक्ष्य अध्ययन में लग जाना है।

मन की एकाग्रता भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 11 मन की एकाग्रता img-1

प्रश्न 2.
दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर:

  1. चंचल-चपल, विचलन।
  2. कामनाएँ-इच्छाएँ, वासनाएँ।
  3. निग्रह-संयम, नियन्त्रण।

प्रश्न 3.
उपसर्ग का नाम उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 11 मन की एकाग्रता img-2

प्रश्न 4.
समास विग्रह कर समास का नाम बताइए।
उत्तर:
MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 11 मन की एकाग्रता img-3

MP Board Solutions

मन की एकाग्रता महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

मन की एकाग्रता बहु विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गीता में परं का अर्थ है-
(क) बड़ा
(ख) अन्य
(ग) परमात्मा
(घ) विशाल।
उत्तर:
(ग) परमात्मा

प्रश्न 2.
मन की एकाग्रता की समस्या है
(क) सनातन
(ख) प्राचीन
(ग) आधुनिक
(घ) अकल्पनीय।
उत्तर:
(क) सनातन

प्रश्न 3.
इन्द्रिय और मन से संयमित बुद्धि का नाम है-
(क) एकाग्रता
(ख) स्थित प्रज्ञता
(ग) विद्वता
(घ) निश्चयात्मक बुद्धि।
उत्तर:
(ख) स्थित प्रज्ञता

प्रश्न 4.
मन कितने प्रकार से उत्तेजित होता है?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) सात।
उत्तर:
(ख) दो

प्रश्न 5.
छात्रों के लिए परम लक्ष्य है
(क) मनोरंजन
(ख) धनार्जन
(ग) पूजा-पाठ
(घ) अध्ययन।
उत्तर:
(घ) अध्ययन।

रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. स्थित प्रज्ञता इन्द्रिय और मन से संयमित ……….. का नाम है।
  2. …………. मन का निग्रह वायु की गति रोकने के समान दुष्कर है।
  3. ………….. वह है जिसकी बुद्धि अस्थिर, चंचल तथा विचलित नहीं है।
  4. ……….. की विषय रस की चार बाह्य दमन से नष्ट नहीं होती है।
  5. अनियन्त्रित ………. समाज में अनाचार पनपाएँगी।

उत्तर:

  1. बुद्धि
  2. चंचल
  3. स्थित प्रज्ञ
  4. इन्द्रियों
  5. इच्छाएँ

सत्य/असत्य

  1. मन की एकाग्रता की समस्या सनातन है।
  2. आज का युग अर्थ प्रधान युग है।
  3. आन्तरिक मनश्चक्र की गति नियन्त्रित वेग से चलती रहती है।
  4. इन्द्रियों की विषय रस की चाह बाह्य दमन से नष्ट नहीं होती है।
  5. ईश्वर और विश्व भिन्न-भिन्न हैं।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. असत्य।

सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 11 मन की एकाग्रता img-4
उत्तर:
1. → (ग)
2. → (ङ)
3. → (घ)
4. → (क)
5. → (ख)

MP Board Solutions

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

  1. ‘मन की एकाग्रता’ पाठ के लेखक कौन हैं?
  2. “चंचल मन का निग्रह वायु की गति रोकने के समान दुष्कर है।” यह स्वीकारोक्ति किसकी
  3. मन की पूर्ण एवं स्थायी एकाग्रता कराने का उपाय किसमें है?
  4. इन्द्रिय और मन से संयमित बुद्धि का नाम क्या है?
  5. गीता में परं का क्या अर्थ है?

उत्तर:

  1. पं. बालकृष्ण भारद्वाज
  2. अर्जुन की
  3. गीता के स्थितप्रज्ञ के विवरण में
  4. स्थित प्रज्ञता
  5. परमात्मा।

मन की एकाग्रता पाठ सारांश

‘मन की एकाग्रता’ कहानी के लेखक पं. बालकृष्ण भारद्वाज हैं। प्रस्तुत कहानी में पं. बालकृष्ण भारद्वाज ने छात्र को गीता के स्थित प्रज्ञ सिद्धान्त का अनुसरण करने का सत्परामर्श दिया है।

आज के प्रौद्योगिकी युग में भौतिक उन्नति के प्रति आकर्षित छात्र को मन की चंचलता का संकट झेलना पड़ रहा है। चंचल मन के कारण वह धन-वैभव के प्रति लालायित हो रहा है और उसका अन्तर्मन अनेक अभिलाषाओं में भटकता है । उसको नियन्त्रित करने का उपाय गीता के स्थित प्रज्ञ सिद्धान्त में है। इसके लिए मन को वासनाओं से दूर रखें तथा इन्द्रियों को भोगों में न लगाएँ। हठयोग द्वारा इन्द्रियों पर नियन्त्रण कर लें तब भी मौका मिलने पर विषय मन में विकसित हो जाते हैं। इसलिए मन को उच्च लक्ष्य में लगाकर विषय-वासना को नष्ट करना चाहिए। गीता के अनुसार ईश्वर और जगत एक ही हैं। अतः सभी के प्रति सेवा भाव वासनाओं को शुद्ध करके मानव मन को नियन्त्रित करता है। उससे इन्द्रियगत विषय भोग भी नियन्त्रित रहता है जिसके फलस्वरूप समाज में सदाचरण पनपता है।

मन की एकाग्रता संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

(1) मन की एकाग्रता की समस्या सनातन है। आज के प्रौद्योगिकी युग में जहाँ भौतिक उन्नति की संभावनाएँ अपार हैं ऐसे में छात्र जब अध्ययन करने बैठता है, तब उसके मन को अनेक तरह के विचार घेरने लगते हैं। वह सोचता है इस अर्थ प्रधान युग में मुझे उत्कृष्ट पद प्राप्ति के लिए एकाग्र मन से पढ़कर परीक्षा में उच्चतम श्रेणी प्राप्त करना आवश्यक है। लेकिन वह जब पढ़ने बैठता है तो क्रिकेट, सिनेमा या मित्र मण्डली की मौज मस्ती के विचार में उसका मन भटकने लगता है। मन का यह विचलन बुद्धि की एकाग्रता भंग कर देता है।

कठिन शब्दार्थ :
एकाग्रता = एकनिष्ठता। सनातन = चिरकाल से चली आ रही। अपार = असीमित। उत्कृष्ट = ऊँचा। विचलन = चंचलता।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश ‘मन की एकाग्रता’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक पं. बालकृष्ण भारद्वाज हैं।

प्रसंग :
इस अंश में छात्र के मन की एकाग्रता की समस्या के विषय में बताया गया है।

व्याख्या :
इस जगत में मन की एकाग्रता की समस्या चिरकाल से चली आ रही है। वर्तमान समय औद्योगिकीकरण का है, इससे भौतिक सम्पन्नता का आकर्षण बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के मन में विभिन्न प्रकार की बातें आना स्वाभाविक है। उसे लगता है कि आज के अर्थ प्रधान समय में उसे एकनिष्ठ मन से पढ़कर ऊँची श्रेणी में परीक्षा पास करनी चाहिए। इससे ही वह ऊँचा पद पा सकेगा। परन्तु जब वह पढ़ना प्रारम्भ करता है तो उसके मन में क्रिकेट खेलने, सिनेमा देखने अथवा मस्ती करने आदि के विचार आने लगते हैं। इससे उसका मन इधर-उधर भटकने लगता है। मन की यह चंचलता एकाग्र होकर पढ़ने में लगने वाली बुद्धि को भटका देती है। फलस्वरूप वह पढ़ नहीं पाता है।

विशेष :

  1. आज के भौतिकवादी युग में छात्र के मन के भटकाव के संकट से परिचित कराया गया है।
  2. शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया गया
  3. विचारात्मक शैली में विषय को समझाया है।

(2) यम-नियम, आसन, प्राणायाम आदि कुछ क्षण के लिए मन को एकाग्र कर सकते हैं पर ये सब मन की पूर्ण और स्थायी एकाग्रता कराने में समर्थ नहीं हैं। इसका पूर्ण उपाय गीता के स्थित प्रज्ञ के विवरण में है। स्थित प्रज्ञ वह है जिसकी बुद्धि अस्थिर, चंचल तथा विचलित नहीं है। स्थित प्रज्ञता इन्द्रिय और मन से संयमित बुद्धि का नाम है।

कठिन शब्दार्थ :
मन = संकल्प करने वाला। बुद्धि = निश्चय करने वाली।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ बताया गया है कि योग द्वारा मन को स्थायी रूप से एकाग्र करना सम्भव नहीं है।

व्याख्या :
मन की एकाग्रता के लिए यम-नियम, प्राणायाम आदि की योग-साधना की जाए तो मन कुछ समय के लिए एकनिष्ठ हो जाता है। लेकिन मन को पूरी तरह स्थायी रूप से एकाग्र करना इस साधना से सम्भव नहीं है। मन के अन्दर वासनाओं के कुछ संस्कार रह जाते हैं। मन की एकाग्रता का स्थायी उपाय गीता द्वारा बताया गया स्थित प्रज्ञ दर्शन है। स्थित प्रज्ञ वह होता है जिसकी चंचलता से मुक्त होकर एकाग्र हो जाये। वस्तुतः स्थित प्रज्ञता उस बुद्धि को कहते हैं जिसने मन और इन्द्रियों पर नियन्त्रण कर लिया हो। ऐसी बुद्धि ही एकनिष्ठ होती है।

विशेष :

  1. इसमें मन की एकाग्रता का साधन स्थित प्रज्ञता को बताया गया है।
  2. साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
  3. विचारात्मक शैली में विषय को प्रतिपादित किया गया है।

MP Board Solutions

(3) स्थित प्रज्ञ दर्शन में बुद्धि की स्थिरता के लिए आवश्यक है कि मन को विषयों के पास न ले जावें, पर यह तभी सम्भव है जब मन इन्द्रियों के भोगों में आसक्त न हो, उनसे दूर रहे, मन इन्द्रियों से दूर तभी तक रह सकता है जब उसमें रहने वाली कामनाएँ नष्ट हो जायें। पर कामनाओं का अभाव तभी सम्भव है जब व्यक्ति अन्य वस्तुओं के बिना स्वयं सन्तुष्ट हो।

कठिन शब्दार्थ :
स्थित प्रज्ञ = इन्द्रिय और मन से संयमित बुद्धि। आसक्त = अति लगावमय, लीन। कामनाएँ = मन की इच्छाएँ।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ गद्यांश में बताया गया है कि व्यक्ति के स्वयं में सन्तुष्ट होने पर ही बुद्धि स्थिर होती है।

व्याख्या :
गीता के स्थित प्रज्ञ दर्शन में स्पष्ट बताया गया है कि मन को विषय-वासनाओं के निकट नहीं जाने दें। मन वासनाओं से तभी दर रह पायेगा जब वह इन्द्रियों के भोग से मुक्त रहेगा। यह तभी सम्भव है जब मनोकामनाएँ समाप्त हो जायें। मन की इच्छाओं का नष्ट होना तभी हो पायेगा जब व्यक्ति स्वयं में ही सन्तुष्ट रहे और उसमें किसी अन्य वस्तु के प्रति आकर्षण न हो।

विशेष :

  1. बुद्धि की स्थिरता के लिए मन का कामना रहित होना आवश्यक है।
  2. साहित्यिक खड़ी बोली में विषय को समझाया गया है।
  3. विचारात्मक शैली अपनाई गई है।

(4) अनियन्त्रित इच्छाएँ समाज में अनाचार पनपायेंगी। लोग कामनाओं से आवेशित होकर निषिद्ध आचरण में प्रवृत्त होवेंगे। अतः इन्द्रियों द्वारा विषयों का सेवन तो हो पर विवेक शून्य आसक्ति न हो। इन्द्रियाँ अपने वश में रहें। उन पर अंकुश रहे अनिवार्य विषयों में इन्द्रियाँ प्रवृत्त हों, पर निषिद्ध वर्जित विषयों में नहीं।

कठिन शब्दार्थ :
निषिद्ध = धर्म द्वारा वर्जित। प्रवृत्त = संलग्न। वर्जित = मना।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ पर इन्द्रियों के नियन्त्रण की अनिवार्यता से अवगत कराया गया है।

व्याख्या :
जब मन की कामनाओं पर कोई नियन्त्रण नहीं होगा तो वे असंगत कार्यों के लिये भी प्रेरित करेंगी। इस तरह दुराचार को बढ़ावा मिलेगा। फल यह होगा कि मन धर्म द्वारा वर्जित आचरण में संलग्न होने लगेगा। अनाचार फैलने से समाज व्यवस्था नष्ट हो जायेगी। इसलिए यह आवश्यक है कि इन्द्रियों पर नियन्त्रण हो। इन्द्रियाँ अनासक्त भाव से अनिवार्य विषयों का ही सेवन करें। धर्म द्वारा वर्जित विषयों से वे पूरी तरह विरक्त रहें।

विशेष :

  1. इन्द्रियों के विषय भोग पर नियन्त्रण को आवश्यक बताया गया है।
  2. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
  3. विचारात्मक शैली को अपनाया गया है।

MP Board Class 10th Hindi Solutions